क्या हम खुद को दूसरे से बहेतर समजते है?
आज कल इतना कॉम्पिटिशन औऱ दौड़ चल रही है कि लोग एक दूसरे के फीलिंग्स की कदर करना ही भूल गए है। एक दूसरे को प्रोतसाहन देने के बजह वह एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे है। ऐसी कौनसी दौड़ में भाग रहे है? पता नही?
कि दूसरे से में बहेतर हु और मेरे जैसा औऱ कोई नही यह झुठ में जी रहे है। शायद यह झूठे घमंड के कारण। शायद अपनी बड़ाई हो इस लिये। शायद मुझसे कोई आगे चला न जाये इस कारण।
आप सभी ने तो खेकड़ो की आदत देखी ही होगी। अगर मुझे आगे बढ़ना है तो दूसरे का पैर नीचे खीचना ही पड़ेगा। इस कारण वह कोई भी अपने मकसद तक नही पहोच सकता। इस से क्या उनका भाईचार अच्छा बना रहेगा।नही बिल्कुल नही।
मुझे लगता है की परमेश्वर की यह इच्छा नही है। बिल्कुल नही है। वह हमेशा चाहता है कि हम एक दूसरे को अपने से बेहतर समजे। एक दूसरे की मदत करे।
कौनसी बात के लिये हमें ऐसा व्यहवार करना है? यह सब शरीर के कारण ही करते है ना? की हमे सारि चीजे अछि मिले। हम सुकून से रहे।पर यह बात तो तय है कि हम मिट्टी से बने है और मिट्टी में ही मिलने वाले है। और ऊपर जाते वक़्त कुछ भी नही लेके जाने वाले है।
पर अगर हम प्रेम से, नम्रता के साथ, एकता में, एक दूसरे को अपने से अच्छा समजे। औऱ एक दूसरे की सहायता करे तो यह दुनिया कितनी सुंदर होगी। खेकड़ो के जगह चीटियों से हम सीखे कैसे एकसाथ मिलकर अपना काम पूरा करते है। एक दूसरे को अच्छा समझ थे है।
आप को क्या लगता है इस विषय मे? आपकी क्या सोच है? आपको क्या लगता है परमेश्वर ने हमे स्वार्थी , झूठे घमंड में , एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए रचा है? या एक दूसरे के साथ बने रहने में?
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